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सीबीटी क्या होती है। सीबीटी कैसे काम करती है। कॉग्नेटिव बिहेवियर थैरेपी पार्ट 1

 

सीबीटी क्या होती है। सीबीटी कैसे काम करती है। कॉग्नेटिव बिहेवियर थैरेपी पार्ट 1


सीबीटी क्या होती है। सीबीटी कैसे काम करती है। कॉग्नेटिव बिहेवियर थैरेपी


आज हम इस लेख के माध्यम से बहुत ही महत्वपूर्ण थैरेपी (पद्धति) के विषय के बारे में बात करेंगे जो कॉग्नेटीव बिहेवियर थैरेपी (सीबीटी) है
आपने इस के बारे में बहुत सुना होगा कि किसी को सीबीटी से ईलाज करवाना है 
सीबीटी आखिर क्या होती है। सीबीटी किस तरह से काम करती है। सीबीटी से कौन कौन सी बीमारियों में सहायता मिलती है। सीबीटी मे कितने सत्र होते हैं। सत्र कितने समय तक चलते हैं।

आज हम पूरे विस्तार से जानकारी देंगे की आखिर सीबीटी होती क्या है।
सबसे पहले तो समझ लेते हैं कि सीबीटी एक प्रकार की ईलाज पद्धति है सीबीटी का पूरा मतलब होता है

सी से कॉग्नेटीव (संज्ञात्मक, ज्ञान, संज्ञान)
बी से बिहेवियर (व्यवहार)
टी से थैरेपी (पद्धति)

हमारे आस पास जितनी भी घटनाएं घटित होती है। उन घटनाओं की जानकारी हमारे दिमाग में जाती हैं। वो जाती है हमारे संवेदक अंग के माध्यम से जैसे हम कानों से सुनते हैं, आंखो से देखते हैं, स्वाद या सुगंध से, छुने से या दबाव से, और तापमान के जरिए जितनी भी घटनाएं घटित होती हैं तो उन सब घटनाओं की जानकारी हमारे दिमाग में जाती है। 

हमारा दिमाग जो है उन सारी घटनाओंका विश्लेषण करता है। विश्लेषण के बाद हमारे अंदर विचार पैदा होते हैं। उन विचारों के बाद हमारे शरीर के अंदर भावनाएं पैदा होती है। इन भावनाओं के आधार पर ही हमारा व्यवहार होता है।

दरअसल हम किसी भी घटना के बारे में किस तरह से सोचते हैं। वो जो हमारा सोचना है उस सोचने के आधार पर ही हमारे अंदर भावनाएं आती है। और उन भावनाओं के आधार पर हमारा व्यवहार होता है।

मान लो अगर हमारे आस पास कोई घटना घटित हो गई है। और अगर उस घटना के प्रति हमने कोई नकारात्मक विचार ले आए तो उस नकारात्मक विचार की वजह से जो हमारी भावना आती है वो भी नकारात्मक आती है। और उस नकारात्मक भावना के कारण जो हमारा व्यवहार होता है वो भी नकारात्मक होता है। जो व्यवहार नकारात्मक होगा वो व्यवहार वापस एक नकारात्मक परिस्थिति पैदा करता है। और नकारात्मक परिस्थिति के कारण वही चक्र शुरु हो जाता है कि नकारात्मक परिस्थिति, नकारात्मक परिस्थिति की जानकारी हमारे दिमाग में जाती है। फिर नकारात्मक विचार, नकारात्मक विचार के बाद नकारात्मक भावना, नकारात्मक भावना के बाद नकारात्मक व्यवहार। फिर नकारात्मक व्यवहार वापस एक नकारात्मक परिस्थिति पैदा कर देता है तो इसका एक चक्र (साइकल) शुरु हो जाता है। 

जब तक हम इस चक्र को नहीं तोड़ते हैं तो यह चक्र चलता रहता है। जिसकी वजह से हमें ये लगता है कि हमारा जीवन जो हे वो पूरा नकारात्मक हो चुका है। हर वक्त दिमाग में नकारात्मक विचार चलते रहते हैं। मन में गलत भावनाएं आती रहती है। मन खराब सा रहता है। कुछ भी अच्छा नहीं लगता। सब कुछ एकदम अजीब सा लगने लग जाता है। एकदम डिप्रेशन (अवसाद) मे चले जाते हैं।


यह चक्र तोड़ना बहुत ज्यादा जरूरी है। ये चक्र तोड़ने के लिए जो हम पद्धति इस्तेमाल करते हैं वही है हमारी सीबीटी। 

कोई भी घटना के बाद जो विचार है, उस विचार के अंदर जिस प्रकार से हमारा विश्लेषण हो रहा है, इस विश्लेषण की वजह से जो नकारात्मक विचार बन रहे हैं। उस नकारात्मक विचार के चक्र को तोड़ने में सीबीटी हमारी मदद करती है।

जैसे ही यह चक्र टूट जाता है तो जो घटना है उस घटना के बारे में हमारे दिमाग में नकारात्मक विचार नही आते, जब नकारात्मक विचार नही आता तो नकारात्मक भावना नही आती। नकारात्मक भावना नही आती है तो नकारात्मक व्यवहार नही होता, जब नकारात्मक व्यवहार नही होता है तो उससे वापस एक नई नकारात्मक परिस्थिति पैदा नहीं होगी। और यह चक्र टूट जायेगा। यही चीज हम सीबीटी के अंदर करते हैं।

सीबीटी का वास्त्विक मतलब कोई भी घटना के प्रति हमारी नकारात्मक समझ (अनुभव) को बदलना, ताकि हमारे विचार बदले, विचार से भावना बदले और भावना से व्यवहार बदले। हमारे आस पास जो भी घटना घट रही है उन घटनाओ के अंदर बदलाव हो ताकि उन घटनाओं की सही जानकारी हमारे दिमाग में जाए।

हमारी जितनी भी प्रकार की मानसिक समस्याएं हैं उन सब में लगभग सीबीटी काम करती है। चिंता के जितने भी विकार है चाहे वो घबराहट, भीड़ से डर लगना, या बीमारी से डर लगना, जितने तरह के डर होते हैं, चिंता का दौरा हो, डिप्रेशन हो या ओसीडी हो इन सब चीजों में सीबीटी का बहुत अच्छा रोल (अभिनय) हैं। जो मध्यम से औसत केस है उनमें तो सीबीटी बहुत अच्छे से काम करती है।

इसके कई अनुसंधान तो बताते हैं की नतीजे मेडिकल दवाई के बराबर है। दवा के कारण जो परिवर्तन हमारे शरीर में आते हैं उतना ही लगभग परिवर्तन हमारे शरीर में सीबीटी की वजह से भी आता है। जितने भी प्रकार की मानसिक समस्याएं होती है उनमें सीबीटी का बहुत बड़ा रोल (अभिनय) हैं। अगर हम बहुत अच्छी तरह से सीबीटी लेते हैं तो इन समस्याओं से बहुत हद तक बाहर आ सकते हैं।

अब हम समझते हैं उदाहरण के माध्यम से कि जो सीबीटी है किस तरह से काम करती हैं।

मान लो कि हमने अपने ऑफिस के अंदर पूरे दिन ज्यादा काम किया जिसकी वजह से हम थक गए थे। और थके हुए हम ऑफिस से घर की तरफ आ रहे हैं। जैसे ही हम बाजार से गुजर रहे थे। हमारे सामने से हमारा कोई घनिष्ठ या निजी व्यक्ति हमारे सामने से गुजरा लेकिन उसने हमें देखा नहीं अनदेखा करके वह सीधा हमारे सामने से गुजर गया। 

अब यहां परिस्थिति यह बनी की हम बाजार से थके हुए जा रहे थे घर की तरफ और हमारा निजी व्यक्ति हमारे सामने से गुजरा,  हमें देखा नहीं यह एक परिस्थिति पैदा हुई। अब इस परिस्थिति से हमारे दिमाग में एक जानकारी गई, जानकारी हमारे दिमाग में जाते ही हमारे दिमाग में अगर कुछ इस तरह के विचार आते हैं कि इसने मेरी तरफ देखा नहीं। इसने तो मुझे अनदेखा कर दिया। यह तो हमेशा से मुझे अनदेखा करता है। मान लो इस तरह का विचार आता है तो इस विचार के बाद जो भावना आती है। वह भावना ऐसे होती है कि हम बहुत ज्यादा उपेक्षित महसूस करते हैं। बहुत ज्यादा अकेला महसूस करते हैं। हमें ऐसा लगता है कि शायद मेरे अंदर ही कोई कमी है जिसकी वजह से मुझे अनदेखा किया जा रहा है। तो बहुत ज्यादा तन्हाई महसूस होने लग जाती है। अकेलापन सा महसूस होने लग जाता है। और डिप्रेशन, अवसाद जैसे लक्षण हमारे अंदर आने लग जाते हैं।


फिर जब हम घर जाते हैं तो हमारा व्यवहार रहता है कि हम इसी चीज के बारे में सोचते रहते हैं। फिर हम घर वालों के साथ व्यस्त नहीं हो पाते हैं। और एक जगह पर चुपचाप बैठे हैं। यह हमारा व्यवहार है। अब अगर हम वहां पर चुपचाप बैठे हैं तो हमारे जो आसपास घर परिवार वाले हैं। वो यह सोचते हैं शायद हम बात करने की इच्छा में नहीं है। चलो इनको थोड़ी देर आराम करने दिया जाए। अब उन्होंने तो यह सोचकर हमसे बात नहीं की कि हम थके हुए हैं, इसलिए ये यहीं बैठे रहे। फिर हमें घर जाकर यही विचार दिमाग में आता है कि बाजार के अंदर जो निजी व्यक्ति था। वह भी बात नहीं कर रहा था और यहां पर जो मेरे परिवार वाले हैं वो भी मुझसे बात नहीं कर रहे हैं। तो सब लोग मुझे अनदेखा करते हैं। कोई मुझसे प्यार नहीं करता क्योंकि मैं अच्छा नहीं हूं, मैं अच्छा दिखता नहीं हूं, मेरे अंदर अच्छी गुणवत्ता नहीं है, मैं अच्छी कमाई नहीं करता, सब लोग मुझे अनदेखा करते हैं। मैं किसी के लायक नहीं हूं, कोई मुझे पसंद नहीं करता, सब एक जैसे ही हैं। तो यहां पर ये विचार हमारे दिमाग में वापस इस जो घरवालों की अनदेखी जो नहीं थी। लेकिन हमारे दिमाग में जो विचार चल रहा था उसकी वजह से एक नकारात्मक विचार फिर से हमारे दिमाग में बना हुआ था।

अब यह चक्र ऐसे ही धीरे-धीरे चलता रहता है। मतलब जो हम घर पर गए जो घर पर नकारात्मक माहौल बना।
 उससे फिर से नकारात्मक विचार और नकारात्मक विचार के कारण फिर हमारे अंदर जो भावनाएं आएगी वो और ज्यादा नकारात्मक और उन नकारात्मक भावनाओं के कारण जो व्यवहार रहेगा वो हम भी घर वालों से कटे कटे रहेंगे। उनसे बातचीत नहीं करेंगे। तो हम इस ऐसे चक्र के अंदर उलझ जाते हैं जिस चक्र से निकलना बड़ा मुश्किल हो जाता है। ऐसे दलदल के अंदर हम फंस जाते हैं जिस से निकलना बड़ा मुश्किल हो जाता है। जिसकी शुरुआत होती है हमारी एक छोटी सी घटना से जो कि हम बाजार से घर की तरफ आ रहे थे। थके हुए थे। हमारे सामने से हमारा निजी व्यक्ति गुजरा और उस निजी व्यक्ति ने हमारी तरफ देखा नहीं। हमसे बात नहीं की। तो बिना प्रमाण के हमारे दिमाग में यह विचार आया था कि उसने मुझे अनदेखा कर दिया और यह पूरा चक्र शुरू हुआ। 

यहां पर जो यह विकृत धारणा बनी हुई थी कि उसने मुझे अनदेखा कर दिया। उसका हमारी तरफ ना देखना। हमारे दिमाग में यह विचार आना कि उसने मुझे अनदेखा कर दिया। यह एक विकृत धारणा है। इसको सही करना बहूत जरूरी है। जो सीबीटी के माध्यम से सही करते हैं। 


इसको कुछ इस तरह से भी समझा जा सकता था कि मान लो हम हमारी ऑफिस से अपने घर की तरफ जा रहे हैं। हम बहुत ज्यादा थके हुए हैं। और  सामने से हमारा निजी व्यक्ति है। वह निकला और उसने हमारी तरफ नहीं देखा। तो वह हम यह भी सोच सकते थे कि यह मेरे सामने से निकला है। और यह किसी और चीज को लेकर परेशान है। कि इसकी घर की कोई चिंता है जिसकी वजह से यह परेशान है। या फिर बाजार में यह कोई चीज लेने जा रहा है। कोई वस्तु लेने जा रहा है। कोई सामान लेने जा रहा है जो इसके लिए ज्यादा जरूरी है। और यह लगातार उसी के बारे में सोचते हुए जा रहा है। इसलिए उसने मेरी तरफ नहीं देखा। 

जैसे ही यह परिस्थिति विचार आता है। तो फिर हमारे दिमाग में वो विचार कि अनदेखा किया जा रहा है वह नहीं आता है। तो हम अब अपने घर आराम से जाएंगे हमारे दिमाग में यह विचार अटका हुआ नहीं रहेगा। हमारे अंदर अच्छे विचार आएंगे। घर पर आएंगे तो हमारी भावनाएं भी बहुत अच्छी होगी। हमारा व्यवहार भी अच्छा होगा। हम जैसे ही घर पहुंच जाएंगे हम अपने घर वालों के पास बैठेंगे। घर वालों से अच्छे से बात करेंगे हमारी घर वालों से बातचीत शुरू हो जाएगी। वहा पर जो एक नकारात्मक परिस्थिती थी वह अब नकारात्मक परिस्थिती पैदा नहीं करेगी।

यहां पर जो सीधा सा फर्क आ रहा है वो हमारे विचारों के ऊपर आ रहा है। हम किस तरह से किसी भी परिस्थिति के बारे में सोचते हैं। अगर हमने विकृत धारणा बनाई तो उस विकृत धारणा की वजह से विकृत विचार बनेंगे। उन मे विचारों की चैन बन जाएगी। विचारों की चैन के कारण नकारात्मक भावनाएं आएगी। नकारात्मक भावनाओं से हमारा व्यवहार नकारात्मक होगा।  नकारात्मक व्यवहार वापस कुछ ऐसी परिस्थिती बनाएगा। जो वापस नकारात्मक विचार बनने का एक कारण बन जाएगा। और यह एक चक्र बन जाएगा। अगर हमे इस चक्र को तोड़ना है तो यह परिस्थिति है उस परिस्थिति के अंदर जो नकारात्मक विचार बन रहे हैं उन विचारों को बदलना पड़ेगा। हमारी जिंदगी के अंदर सुबह से लेकर शाम तक बहुत सारे आयोजन होते हैं। उन आयोजनों के बारे में जो हमारे दिमाग में विचार आते हैं। अगर हम उन विचारों को सही करते जाएंगे। अगर हम विकृत जितने भी विचार है उन विचारों को सही करें। तो हमारे अंदर बहुत अच्छी वाली भावनाएं आने लगती है। और अच्छी भावनाओं के कारण हमारा व्यवहार भी अच्छा रहता है। और हम हमारे आस पास जो वातावरण है उसमें बहुत अच्छी तरह से समायोजन (एडजस्ट) रहते हैं। तो यह सीबीटी के अंदर होता है।


हमारे आसपास के वातावरण को लेकर हम खुद को लेकर जो अपने आप को उत्तर दे रहे हैं। उन उत्तर का हमारे शरीर पर बहुत ज्यादा प्रभाव पड़ता है। हमारी भावनाओं पर बहुत ज्यादा प्रभाव पड़ता है। तो हम अपने आप को किस तरह से उत्तर दे, कैसे हम सकारात्मक उत्तर दें। जो अलग-अलग कारक है उनको मिलाते हुए उत्तर दे। यही काम सीबीटी के अंदर किया जाता है।

जितनी भी जो वैकल्पिक व्याख्या हैं संभव हो सकती हैं। उस परिस्थिति के बारे में। उनके बारे में सोचने का हमें अभ्यास कराया जाता है। उसके लिए हमें एक प्रशिक्षित प्रशिक्षक की जरूरत पड़ती है। जो हमारे इन विचारों को पहचानता हो। जो हम हर रोज हमारी जिंदगी के अंदर जिस परिस्थिति में हम अपने आसपास जीते हैं। वह उन सारी परिस्थितियों के बारे में हम से पूछता है। बहुत सारे तरीके के हमसे प्रश्न पूछता है। और जो उन सारे वैकल्पिक जो अनुप्रयोग हमारी तरफ से आ सकते हैं। उन सब के ऊपर बात करता है। उनकी जो प्रयोज्यता है। उनके ऊपर बात करता है। तो यही सीबीटी का काम होता है।

 और भी इसके बहुत सारे प्रचार होते हैं। बहुत सारे प्रशिक्षण कार्यक्रम होते हैं। आप किसी भी आपके आसपास अगर सीबीटी का प्रशिक्षित प्रशिक्षक है तो उससे आप और भी जान सकते हैं। जानकारी ले सकते हैं कि किस किस तरह की अनुसूची होती हैं।

 नहीं तो हमारे आगे जो लेख आएंगे उन लेखों में उन सारे नमूनों  की बात करेंगे। कि और किस-किस तकनीक से हम इसे बेअसर कर सकते हैं।

हम अपनी रोजमर्रा की जिंदगी में हम अपनी तरफ से भी इस चीज का अभ्यास कर सकें कि हम भी हमारे आसपास कि जो भी परिस्थिति होती है। उस परिस्थिति के अंदर हमारे जो विकृत विचार है। उन विकृत विचारों को कैसे बदलते हुए सामान्य विचार जो आने चाहिए वह विचार हम ले आए। अगर इस चीज का अच्छे से अभ्यास करने लग जाए तो हम खुद ही स्वय चिकित्सक बन सकते हैं। और सीबीटी का मकसद भी यही होता है कि हर व्यक्ति को स्वयं चिकित्सक बनाया जाए। ताकि जो वास्तव परिस्थिति है। जो उसके आसपास हो रही है। उन परिस्थितियों को बहुत अच्छे से पहचाने और पहचान कर उनके अपने दिमाग के अंदर जो सकारात्मक विचार है वह विचार आने लग जाए। नकारात्मक विचार ना आए।


अलग-अलग बीमारियों में अलग-अलग सत्र की आवश्यकता होती है। अगर हम आम तौर पर देखें तो आमतौर से 15 से 20 सत्र की जरूरत होती है। जो सत्र है वह 30 मिनट से लेकर 1 घंटे तक चलता है। वह निर्भर करता है समस्या के ऊपर की समस्या किस स्तर की है। और कितने समय से उस से गुजर रहा है। और हमारे अंदर काबिलियत कितनी है उन चीजों को स्वीकार करने की। उन सब चीजों को लेकर इस पर भी सत्र का टाइम निर्भर करता है। तो इस तरह से हम अनुसरण करते हैं तो तकरीबन 6 से 8 महीने तक इसके सत्र चलते हैं। और हमारे जो विचारों की प्रक्रिया है। उन विचारों की प्रक्रिया को बहुत अच्छे से सही कर लेते हैं। 


तो सीबीटी है वह काफी सहायक है। हमारे विचारों को बदलने के लिए जो विचारों की चैन है उस चैन को तोड़ने में सीबीटी बहुत अच्छे से मदद करती हैं। अगर इस तरह की समस्या से आप गुजर रहे हैं तो, परेशान हैं तो आपके आसपास कोई भी पेशेवर हो जो सीबीटी का प्रशिक्षण देता हो। सीबीटी के ऊपर काम करता हो तो आप उनसे संपर्क कर सकते हैं।

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